मांग का सिंदूर
हाथों में मेहंदी का चलन नहीं बदला ।
मां का ममतामई आंचल
दूध का रंग नहीं बदला ।
बहन का प्यार वो
राखी का बंधन नहीं बदला ।
बेटियां आँगन का फूल
बाप के कंधों का बोझ नहीं बदला ।
घर के
चिरागों की खातिर अजन्माओं की हत्या का
सिलसिला
नहीं बदला ।
व्रत रखें कोई
सावित्री, सीता की अग्निपरीक्षा का
मंज़र
नहीं बदला ।
सदियां बदली हैं, जमाना
बदला हैं, यूं तो औरत का
रूप-रंग कम नहीं
बदला ।
मगर औरत की आंखों से
अश्कों का रिश्ता नहीं बदला ।
बदलने को तो देश का
भेष कम नहीं बदला ।
तरूण कुमार, सावन