Powered By Blogger

शनिवार, 24 जनवरी 2015

कविता- आज़ादी अभी अधूरी है

गड़तंत्र दिवस हर साल मनाने मज़बूरी हैं।
रात अभी अँधेरी है, आज़ादी अभी अधूरी है।

सवाल दो वक़्त की रोटी का जबाव जलेबी है।
दिन-रात की मेंहनत चंद हाथों में गिरबी है।
नाप रहें हैं लेकर फीता संसद की धेरी पर
भूख बड़ी गरीब से, भूखों से बड़ी गरीबी है।

राम राज्य की बाते कितनी कोरी है
रात अभी अँधेरी है, आज़ादी अभी अधूरी है।

फूल अपने बता रहें हैं, गरीबों को कांटे चुभा रहे है
सत्ता की चाभी कुछ लोग आपस में घुमा रहें है
अन्न उगलती धरती, कारखानो में जलती गरीबी है
नेता सारे, धन की देवी को अपनी भाभी बता रहें है

जनता क्या हैं वो तो बेचारी गंधारी है
रात अभी अँधेरी है, आज़ादी अभी अधूरी है।
                                                 तरूण कुमार `सावन`

गुरुवार, 1 जनवरी 2015

तलाश जारी हैं...


चलती हुई बस
चलाता हुआ बस चालक
यात्रियों के बीच बेठा हुआ
एक अच्छा आदमी
सहयात्री, सहपाठी
या अलग-थलग
लगता है या हैं.....
अचानक बस दुर्घटना
सभी लोग सही-सलामत
नहीं था तो एक
दुर्लभ प्रजाति का जीव
यानि अच्छा आदमी
सभी लोग तलाश रहें हैं
एक पुलिस वाले ने पुछा
क्या मिला...
दुसरे ने कहां तलाश जारी हैं...

     तरूण कुमार, सावन