गड़तंत्र दिवस हर
साल मनाने मज़बूरी हैं।
रात अभी अँधेरी है,
आज़ादी अभी अधूरी है।
सवाल दो वक़्त की
रोटी का जबाव जलेबी है।
दिन-रात की मेंहनत
चंद हाथों में गिरबी है।
नाप रहें हैं लेकर
फीता संसद की धेरी पर
भूख बड़ी गरीब से,
भूखों से बड़ी गरीबी है।
राम राज्य की बाते
कितनी कोरी है
रात अभी अँधेरी है,
आज़ादी अभी अधूरी है।
फूल अपने बता रहें
हैं, गरीबों को कांटे चुभा रहे है
सत्ता की चाभी कुछ लोग
आपस में घुमा रहें है
अन्न उगलती धरती,
कारखानो में जलती गरीबी है
नेता सारे, धन की
देवी को अपनी भाभी बता रहें है
जनता क्या हैं वो तो
बेचारी गंधारी है
रात अभी अँधेरी है,
आज़ादी अभी अधूरी है।
तरूण कुमार `सावन`